ॐ स्थापकाय च धर्मस्य सर्वधर्मस्वरूपिणे। अवतारवरिष्ठाय रामकृष्णाय ते नमः॥ ॐ नमः श्री भगवते रामकृष्णाय नमो नमः॥ ॐ नमः श्री भगवते रामकृष्णाय नमो नमः॥ ॐ नमः श्री भगवते रामकृष्णाय नमो नमः॥

Tuesday, March 31, 2020

April Monthly Satsang


🙏🌼 Prayer to Maa🌼🙏

🙏🌼Prayer to Maa🌼🙏

Maa... make me a clear and pure channel through which Your Love may flow out through me unstintedly to all Your children... May i never carry any hatred or jealousy in my heart.

Bless me Maa and make me so pure and selfless that I shall be worthy to enter Your Divine Realm and taste the sweetness of Your Divine Love and may I never fail to share that Love with all who suffer and are oppressed.

Jai Maa.

Monday, March 30, 2020

Kali the Mother

The stars are blotted out,
The clouds are covering clouds,
It is darkness vibrant, sonant.
In the roaring, whirling wind
Are the souls of a million lunatics
Just loose from the prison-house,
Wrenching trees by the roots,
Sweeping all from the path.
The sea has joined the fray,
And swirls up mountain-waves,
To reach the pitchy sky.
The flash of lurid light
Reveals on every side
A thousand, thousand shades
Of Death begrimed and black —
Scattering plagues and sorrows,
Dancing mad with joy,
Come, Mother, come!
For Terror is Thy name,
Death is in Thy breath,
And every shaking step
Destroys a world for e’er.
Thou “Time”, the All-Destroyer!
Come, O Mother, come!
Who dares misery love,
And hug the form of Death,
Dance in Destruction’s dance,
To him the Mother comes.

(Complete Works of Swami Vivekananda, Volume 4.)

Speech on the life and teachings of Sri Ramakrishna by Swami Vimohananda

Speech on the life and teachings of Sri Ramakrishna by Swami Vimohananda

Surrender yourself to God!

Durga Saptashati Chanting (Live Stream)

Dear Devotees,

Sub: Durga Saptashati Chanting (Live Stream)

The whole country, infact the whole world is reeling under the onslaught of Covid-19 virus.  However, it is Vasant Navaratri time and chanting of Durga Saptashati is considered an act of great merit capable of removing several evils.  So, all of us together shall chant Durga Saptashati on the Saptami, Ashtami and Navami i.e. 31st of March, 1st of April and 2nd of April, 2020 from 9:25 am.  The chanting will go live stream on all the days.  We have given below the links.  Kindly click the links to go online.  Please note that there are different links for different days.

Link for 31st March, 2020 : https://youtu.be/AH9M4fhdC8w

Link for 1st April, 2020 : https://youtu.be/CZ_pUyz50jg

Link for 2nd April, 2020 : https://youtu.be/GvK30jCkXKo

Thanking you,

Yours in service,
Swami Shantatmananda
Secretary

Sunday, March 29, 2020

👉 साधक का भाव



साधना की भी आवश्यकता है। परन्तु साधक, दो तरह के होने है। एक साधका का स्वभाव बन्दर के बच्चे जैसा हाता है, दुसरे तरह क साधक का बिल्ली के बच्चे जैसा। बन्दर का बच्चा किसी तरह खुद अपनी माँ को पकड़े रहता है। इसी तरह कोई साधक सोचते हैं, हमें इतना जप करना चाहिए, इतनी देर तक ध्यान करना चाहिए, इतनी तपस्या करनी चाहिए, तब कहीं ईश्वर मिलेंगे। इस तरह के साधक अपने प्रयत्न से ईश्वर-प्राप्ति की आशा रखते हैं।
"परन्तु बिल्ली का बच्चा खुद अपनी माँ को नहीं पकड़ सकता। वह पड़ा हुआ बसमीऊँ मीऊँ' करके पुकारता है। उसकी माँ चाहे जो करे। उसकी माँ कभी उसे बिस्तर पर ले जाती है, कभी छत पर लकड़ी की आड़ में रख देती है, और कभी उसे मुँह में दबाकर यहाँ-वहाँ रखती फिरती है। वह स्वयं अपनी माँ को पकड़ना नहीं जानता। इसी तरह कोई साधक स्वयं हिसाब करके साधन-भजन नहीं कर सकते कि इतना जप करूँगा, इतना ध्यान करूँगा। वह केवल व्याकुल होकर रो रोकर उन्हें पुकारता है। उसका रोना सुनकर वे फिर रह नहीं सकते। आकर दर्शन देते हैं।"



Saturday, March 28, 2020

👉 आत्मचिंतन के क्षण


 भगवान् को लाभ करना हो तो संसार से तीव्र-वैराग्य चाहिये। जो कुछ ईश्वर के मार्ग के विरोधी मालूम हो, उसे तत्क्षण त्यागना चाहिये। पीछे होगा यह सोच कर छोड़ रखना ठीक नहीं है। काम-काँचन ईश्वर-मार्ग के विरोधी हैं। उनसे मन हटा लेना चाहिये। दीर्घसूत्री होने से परमार्थ का लाभ नहीं होगा। कोई एक अंगोछा लेकर स्नान करने को जा रहा था। उसकी औरत ने उससे कहा कि- तुम किसी भी काम के नहीं हो, उम्र बढ़ रही है, अब भी यह सब (व्यवहार) छोड़ नहीं सके। मुझको छोड़कर तुम एक दिन भी नहीं रह सकते। किन्तु देखो, वह रामदेव कैसा त्यागी है। पति ने कहा-क्यों उसने क्या किया? औरत ने कहा- उसकी सोलह औरतें हैं। वह एक-एक करके उनको त्याग रहा है। तुम कभी त्याग कर नहीं सकोगे। जो त्याग करता है वह क्या थोड़ा-थोड़ा करके त्याग करता है? औरत से मुस्कराकर कहा-पगली, तू नहीं समझती है त्याग करना उसका काम नहीं है। अर्थात् उसके कहने से त्याग नहीं होगा, मैं ही त्यागकर सकूँगा। यह देख, मैं चल देता हूँ।
इसी का नाम तीव्र वैराग्य है। उस आदमी को ज्यों वैराग्य आ गया त्यों−ही उसने त्याग किया। अंगोछा कन्धे में ही रहा कि वह चल दिया। वह संसार का कुछ ठीक-ठाक नहीं कर पाया। घर की ओर एक बार पीछे लौट कर देखा भी नहीं। जो त्याग करेगा उसको मनोबल चाहिए। लुटेरों का भाव! लूटने से पहले जैसे डाकू लोग कहते हैं, ऐ मारो! लूटो! काटो! अर्थात् पीछे क्या होगा, इसका ख्याल न कर खूब मनोबल के साथ आगे बढ़ना चाहिये।

👉 आत्मचिंतन के क्षण



इधर का (ईश्वरीय) आनन्द मिलने से उसको (वैषयिक) आनन्द अच्छा लगता है। ईश्वरी आनन्द लाभ करने से संसार नमक का (शाक जैसा) निःरस भान होता है। शाल मिलने से फिर वनात अच्छा नहीं लगता है। जो संसार के धर्म संसार में रह कर ही धर्मावरण करना ठीक है यह कहते हैं वे यदि एक बार भगवान् का आनन्द पावें तो उनको फिर और कुछ अच्छा नहीं लगता। कर्म के लिए आशक्ति कम होती जाती है। क्रमशः ज्यों-ज्यों आनन्द बढ़ता जाता है त्यों-त्यों फिर कर्म भी कर नहीं सकते हैं केवल उसी आनन्द को ढूंढ़ते फिरते हैं। ईश्वरीय आनन्द के पास फिर विषयानन्द और रमणानन्द तुच्छ हो जाते हैं, एक बार स्वरूपानन्द का स्वाद तुच्छ कर उसी आनन्द के लिए व्याकुल होकर फिरते है, तब संसार गृहस्थी रहे चाहे न रहे ! उसके लिए कोई परवाह नहीं रहती है।
संसारी लोग कहते हैं कि-दोनों तरफ रहेंगे! दो आने का शराब पीने से मनुष्य दोनों ओर ठीक रहना चाहते हैं। किन्तु अधिक शराब पीने से क्या फिर दोनों तरफ नजर रखी जा सकती है? ईश्वरीय आनन्द मिलने से फिर कुछ साँसारिक कार्य अच्छा नहीं लगता है। तब काम काँचन की बातें मानो हृदय में चोट सी लगती हैं। बाहरी बातें अच्छी नहीं लगती हैं। तब मनुष्य ईश्वर के लिए पागल होता है। रुपये पैसे कुछ भी अच्छे नहीं लगते हैं।
ईश्वर लाभ के बाद कोई संसार है तो वह होता है-विद्या का संसार। उसमें कामिनी-काँचन का प्रभाव नहीं रहता है, उसमें रहते हैं, केवल भक्ति, भक्त और भगवान्।




👉प्रार्थना


 * भगवान से प्रार्थना करो, – 'हे प्रभु, अपने करुणापूर्ण मुख से मेरी रक्षा करो। मुझे असत् से सत् की ओरतम से ज्योती की ओर, मृत्यु से अमृतत्व की  ओर ले चलो।'
* 'हे माँ! यह ले तेरा पुण्य, यह ले तेरा पाप। मुझे अपने चरणकमलों में शुद्धभक्ति दे। यह ले तेरी शुद्धता, यह ले तेरी अशुद्धता। मुझे शुद्धभक्ति दे। यह ले तेरा धर्म, यह ले तेरा अधर्म। मुझे शुद्धभक्ति दे।'
* 'माँ, मुझे केवल यही आशीर्वाद दे कि मैं तन से, मन से तथा वचन से ईश्वर की सेवा कर सकूँ, मैं इन आँखों से उनके भक्तों को देखू, इस मन से उनका ध्यान करूँ और इस जिह्वा से उनका नामगुणगान करूँ।'
* 'हे माँ, मेरे भीतर से ये विचार नष्ट कर दे कि मैं उच्च जाति का हूँ, मैं ब्राह्मण हूँ और वे लोग नीच जाति के हैं, शूद्र हैं, क्योंकि वे सब विभिन्न रूपों में तेरे अतिरिक्त और हैं क्या?'
* 'हे माँ जगदम्बा, मैं लोकमान्यता नहीं चाहता. देहसुख नहीं चाहता, मेरा मन गंगा-यमुना के प्रवाह की तरह तुझमें मिलकर एक हो जाय। माँ, मैं भक्तिहीन हूँ योगसाधना नहीं जानता, मैं दीनहीन हूँ, बन्धुहीन हूँ, मैं किसी से प्रशंसा नहीं चाहता। कृपा करके मेरे मन को अपने चरणकमलों में सदा निमग्न रख।'
* 'हे माँ, मैं यन्त्र हूँ, तू यन्त्रचालक। मैं गृह हूँ, तू गृहिणी। मैं रथ हूँ, तू सारथि। तू मुझे जैसा चलाती है, वैसा मैं चलता हूँ। जैसा कराती है, वैसा मैं करता हूँ। जैसा कहलवाती है, वैसे कहता हूँ। मैं नहीं, मैं नहीं, तू ही, तू ही।'