श्री रामकृष्ण-आरात्रिकम्
खण्डन-भवबन्धन.जगवन्दन वन्दि तोमाय।
निरजन. नररूपधर, निर्गुण. गुणमय
मोचन-अघदूषण, जगभूषण, चिद्घनकाय ।
ज्ञानाजन-विमल-नयन, वीक्षणे मोह जाय ।।
भास्वर भावसागर.चिर-उन्मद प्रेम-पाथार।
भक्तार्जन-युगलचरण, तारण-भव-पार ।।
जृम्भित-युग-ईश्वर, जगदीश्वर, योगसहाय ।
निरोधन समाहित मन, निरखि तव कृपाय ।।
भजन-दुखगंजन, करुणाधन, कर्मकठोर।
प्राणार्पण-जगततारण कृन्तन-कलिडोर ।।
वचन-कामकांचन, अतिनिन्दित-इन्द्रिय-राग।
त्यागीश्वर हे नरवर, देहो पदे अनुराग।।
निर्भय, गतसंशय, दृढनिश्चय-मानसवान।
निष्कारण-भकतशरण, त्यजि जाति-कुल-मान।।
सम्पद तव श्रीपद, भव गोष्पद-वारि यथाय।
प्रेमार्पण, समदरशन, जगजन-दुख जाय ।।
नमो-नमो प्रभु वाक्य-मनातीत मनोवचनकाधार।
ज्योतिर ज्योति, उजल हृदिकन्दर तुमि तमभंजनहार।।
धे धे धे लंग रंग भंग, बाजे अंग संग मृदंग।
गाइछे छन्द भकतवृन्द, आरति तोमार।।
जय जय आरति तोमार, हर हर आरति तोमार।
शिव शिव आरति तोमार, जय श्री गुरुमहाराजजी की जय।।