उसने कहा- मैं आपसे गीता पढ़ना चाहता हूं। स्वामीजी ने युवक को
ध्यान से देखा और कहा- 6 माह प्रतिदिन फुटबॉल खेलो, फिर आओ, तब मैं गीता पढ़ाऊंगा। युवक आश्चर्य में पड़ गया। गीताजी जैसे पवित्र ग्रंथ के अध्ययन के
बीच में यह फुटबॉल कहां से आ गया? इसका क्या काम? स्वामीजी उसको देख रहे थे। उसकी चकित अवस्था को देख स्वामीजी ने समझाया- बेटा! भगवद्गीता
वीरों का शास्त्र है। एक सेनानी द्वारा एक महारथी को दिया गया दिव्य उपदेश है। अत:
पहले शरीर का बल बढ़ाओ। शरीर स्वस्थ होगा तो समझ भी परिष्कृत होगी। गीताजी जैसा कठिन विषय आसानी से
समझ सकोगे। जो शरीर को स्वस्थ नहीं रखता, सशक्त-सजग नहीं रख सकता अर्थात्
जो शरीर को नहीं संभाल पाया, वह गीताजी के विचारों को, अध्यात्म को कैसे संभाल सकेगा।
जीवन में कैसे उतार पाएगा? उसे पचाने के लिए स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन ही चाहिए।