'Bhagavad Gita' classes in English by Srimath Swami Gautamanandaji Maharaj that were being conducted in Ramakrishna Math, Mylapore, Chennai will now be continued online every Sunday on YouTube.
'जतो मत ततो पथ' जितने मत हैं, 'भगवान् तक पहुँचने के उतने ही पथ हैं'
ॐ स्थापकाय च धर्मस्य सर्वधर्मस्वरूपिणे। अवतारवरिष्ठाय रामकृष्णाय ते नमः॥ ॐ नमः श्री भगवते रामकृष्णाय नमो नमः॥ ॐ नमः श्री भगवते रामकृष्णाय नमो नमः॥ ॐ नमः श्री भगवते रामकृष्णाय नमो नमः॥
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Sunday, May 31, 2020
Tuesday, May 5, 2020
भगवान नरसिंह का जन्मोत्सव
बुधवार, 6 मई आज भगवान विष्णु के चौथे अवतार नरसिंह का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। पद्म पुराणके अनुसार प्राचीन समय में वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि पर भगवान नरसिंह प्रकट हुए थे। कथा के अनुसार राक्षस हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्त था। इसीलिए हिरण्यकशिपु प्रहलाद पर अत्यचार करता था और कई बार उसे मारने की कोशिश भी की। भगवान विष्णु ने अपने भक्त को बचाने के लिए एक खंबे से नरसिंह रूप में अवतार लिया। इनका आधा शरीर सिंह का और आधा इंसान का था। इसके बाद भगवान नरसिंह ने हिरण्यकशिपु को मार दिया।
क्यों लिया ऐसा अवतार: आधा शरीर इंसान और आधा शेर
नरसिंह रूप भगवान विष्णु का रौद्र अवतार है। ये दस अवतारों में चौथा है। नरसिंह नाम के ही अनुसार इस अवतार में भगवान का रूप आधा नर यानी मनुष्य का है और आधा शरीर सिंह यानी शेर का है। राक्षस हिरण्यकश्यप ने भगवान की तपस्या कर के चतुराई से वरदान मांगा था। जिसके अनुसार उसे कोई दिन में या रात में, मनुष्य, पशु, पक्षी कोई भी न मार सके। पानी, हवा या धरती पर, किसी भी शस्त्र से उसकी मृत्यु न हो सके। इन सब बातों को ध्यान में रख भगवान ने आधे नर और आधे मनुष्य का रूप लिया। दिन और रात के बीच यानी संध्या के समय, हवा और धरती के बीच यानी अपनी गोद में लेटाकर बिना शस्त्र के उपयोग से यानी अपने ही नाखूनों से हिरण्यकश्यप को मारा।
भगवान विष्णु का ये अवतार बताता है कि जब पाप बढ़ जाता है तो उसको खत्म करने के लिए शक्ति के साथ ज्ञान का उपयोग भी जरूर हो जाता है। इसलिए ज्ञान और शक्ति पाने के लिए भगवान नरसिंह की पूजा की जाती है। इस बात का ध्यान रखते हुए ही उन्हें ठंडक और पवित्रता के लिए चंदन चढ़ाया जाता है।
भगवान नरसिंह से जुड़ी खास बातें
भगवान नरसिंह की विशेष पूजा संध्या के समय की जानी चाहिए। यानी दिन खत्म होने और रात शुरू होने से पहले जो समय होता है उसे संध्याकाल कहा जाता है। पुराणों के अनुसार इसी काल में भगवान नरसिंह प्रकट हुए थे।
भगवान नरसिंह की पूजा में खासतौर से चंदन चढ़ाया जाता है और अभिषेक किया जाता है। ये भगवान विष्णु के रौद्र रूप का अवतार है। इसलिए इनका गुस्सा शांत करने के लिए चंदन चढ़ाया जाता है। जो कि शीतलता देता है। दूध, पंचामृत और पानी से किया गया अभिषेक भी इस रौद्र रूप को शांत करने के लिए किया जाता है।
पूजा के बाद भगवान नरसिंह को ठंडी चीजों का नैवेद्य लगाया जाता है। इनके भोग में ऐसी चीजें ज्यादा होती हैं जो शरीर को ठंडक पहुंचाती हैं। जैसे दही, मक्खन, तरबूज, सत्तू और ग्रीष्म ऋतुफल चढ़ाने से इनको ठंडक मिलती है और इनका गुस्सा शांत रहता है।
वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि पर भगवान नरसिंह के प्रकट होने से इस दिन जल और अन्न का दान दिया जाता है। जो भी दान दिया जाता है वो, चांदी या मिट्टी के बर्तन में रखकर ही दिया जाता है। क्योंकि मिट्टी में शीतलता का गुण रहता है।
Saturday, May 2, 2020
श्रीगुरु-प्रार्थना
श्रीगुरु-प्रार्थना
भवसागर-तारण-कारण
हे ।
रविनन्दन-बन्धन-खण्डन हे ।।
शरणागत किंकर भीत मने । गुरुदेव दया करो
दीनजने ।१।
हृदिकन्दर-तामस-भास्कर
हे । तुमि विष्णु प्रजापति शंकर हे ।।
परब्रह्म परात्पर वेद भणे । गुरुदेव दया करो दीन
जने ।२।
मनवारण-शासन-अंकुश हे । नरत्राण तरे हरि चाक्षुष हे ।।
गुणगान -परायण देवगणे ।
गुरुदेव दया करो दीनजने ।३।
कुलकुण्डलिनी-घुम-भंजक
हे । हृदिग्रंथि- वदारण-कारक हे ।।
मम मानस चंचल रात्रदिने ।गुरुदेव
दया करो दीनजने ।४।
रिपुसूदन मंगलनायक
हे। सुख शान्ति -वराभय-दायक हे ।।
त्रयताप हरे तव नाम गुणे । गुरुदेव दया
करो दीनजने ।५।
अभिमान- प्रभाव-विमर्दक हे ।गतिहीन-जने
तुमि रक्षक हे ।।
चित
शंकित वंचित भक्तिधने । गुरुदेव दया करो दीनजने ।६।
तव नाम सदा
शुभसाधक हे । पतिताधम-मानव-पावक हे ।।
महिमा तव गोचर शुद्ध मने ।गुरुदेव दया
करो दीनजने ।७।
जय सद्गुरु
ईश्वर-प्रापक हे ।
भवरोग-विकार-विनाशक हे ।।
मन जेन रहे तव श्रीचरणे । गुरुदेव दया
करो दीनजने ।८।
Friday, May 1, 2020
रामकृष्ण मिशन / स्थापना दिवस – 1 मई, 1897
रामकृष्ण मिशन / स्थापना दिवस – 1 मई, 1897
भारत मे ब्रिटिश राज के समय , ब्रिटिश ईसाई हिन्दू धर्म की कटु निंदा करके हिन्दुओं को ईसाई मत में मतांतरित करने के अभियान में जुटे थे। हिन्दू संतों की निंदा के लिए उन्होंने तर्क दिया कि ये सिर्फ आत्ममोक्ष के लिए तपस्या करते हैं, समाज को इनसे क्या मिलता है। ईसाई मिशनरियों और संस्थानों की समाज सेवा का ढोल पीटने वाले ईसाइयों और हिन्दू संतों की भत्र्सना का जवाब देने का विचार स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानंद ने किया। और कहा, “जो गरीब, कमजोर और बीमार में शिव के दर्शन करता है, वही सही अर्थों में शिव की पूजा करता है’ “जीवे सेवा शिवेर सेवा’। स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन का ध्येय वाक्य बन गया, “आत्मनो मोक्षार्थम्-जगत् हिताय’ अर्थात् आत्ममोक्ष के प्रयास के साथ समाज सेवा। इसी ध्येय को लेकर 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना हुई।
जाति, पंथ, मत की दीवारों को तोड़कर रामकृष्ण मिशन ने सर्वप्रथम सामाजिक समरसता का उद्घोष किया। मुस्लिम हो, ईसाई हो या हिन्दू- रामकृष्ण मठ में सभी को दीक्षा दी। लेकिन सभी के लिए एक अनिवार्यता थी 9 साल तक हिन्दू धर्म के अनुसार यज्ञोपवीत धारण, चोटी-रखना और साथ ही समाज के हर वर्ग को देखना। रामकृष्ण मिशन के संन्यासियों के लिए मंदिर में प्रार्थना और अस्पताल में रोगियों की सेवा में कोई अंतर नहीं। रामकृष्ण मिशन ने ज्ञान को कर्म के साथ जोड़ा।
सामाजिक समरसता का उद्घोष तो स्वयं स्वामी रामकृष्ण ने ही किया था। उन्होंने इस्लामी सिद्धांतों का अध्ययन किया, कुरान के अनुसार कई दिन तक नमाज भी पढ़ी, ईसा का विचार भी ग्रहण किया। और फिर निष्कर्ष रूप में सनातन धर्म के मूल “एकम्सद् विप्रा: बहुधा वदन्ति’ का साक्षात् लोगों को कराया। उनके अनुयायियों में ईसाई भी थे और मुसलमान भी। सभी ने सनातन हिन्दू धर्म के मूल सिद्धांतों पर चलते हुए ज्ञान के साथ कर्म को भी अपनाया। समाज सेवा के विभिन्न क्षेत्रों में रामकृष्ण मिशन ने हाथ बढ़ाया।
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